21 May | National Anti Terrorism Day: आतंकवाद का इतिहास और भारत का स्वरूप
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |

21 मई को राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाता है।
इसी दिन एयर इंडिया की उड़ान IX-182 मंगलुरु में दुर्घटनाग्रस्त हुई थी।
यह दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक विविधता और संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है।
दुनिया अनादि काल से आतंकवाद के विभिन्न रूपों से जूझ रही है। माना जाता है कि इस शब्द का पहली बार उल्लेख 1793 में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुआ था। हालांकि इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है, पर यह सहमति है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय घटना है, जो सीमाओं को नहीं मानती, ज्यादातर गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा की जाती है, जिन्हें कुछ राज्यों द्वारा राजनीतिक या धार्मिक उद्देश्यों के लिए सहायता मिल सकती है। तकनीक और स्थायी अस्थिरता के कारण आतंकवाद का स्वरूप वर्षों में बदला है। यदि आतंकवाद को एक विचारधारा मानें, तो इससे लड़ने के लिए सैन्य प्रयासों के साथ-साथ इस विचार को भी चुनौती देनी होगी। परंतु, नरम और कठिन शक्ति के बीच संतुलन अक्सर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की गतिशीलता से प्रभावित होता रहता है।
भारत 1947 में आज़ादी के बाद से ही आतंकवाद का निशाना रहा है। नरम और कठिन शक्ति के संतुलन के प्रयासों के बावजूद, इस लड़ाई ने सेना और आम नागरिकों दोनों को प्रभावित किया है। भारत ने देखा है कि पहले जमीनी सीमाओं से होने वाले घुसपैठ अब समुद्री सीमाओं तक फैल गए हैं, और 'सॉफ्ट' नागरिक लक्ष्यों के साथ-साथ 'हार्ड' सैन्य लक्ष्यों पर भी हमले हो रहे हैं।
1990 का दशक आतंकवाद के तेज़ उभार का दशक रहा। 2001 में संसद पर हमला भारत की राष्ट्रीय चेतना पर हमला माना जाता है। समुद्री क्षेत्र में 1993 के मुंबई ब्लास्ट से आतंकवाद की शुरुआत हुई। नवंबर 2008 का हमला '26/11' के नाम से इतिहास में दर्ज है। ये घटनाएँ समुद्री सीमाओं की कमज़ोरी की याद दिलाती हैं। 2008 के हमलों ने समुद्री सुरक्षा को राष्ट्रीय एजेंडे पर ला दिया और 'समुद्री आतंकवाद' को भारत की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा माना जाने लगा।
आतंकवाद पीड़ितों में कोई भेद नहीं करता—न उम्र, न राष्ट्रीयता, न धर्म, न भाषा। इसके आयोजकों और अपराधियों का एकमात्र उद्देश्य आतंक फैलाना है। भारत में पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर मासूम बच्चे तक इसके शिकार हुए हैं। 21 मई, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि, को 'आतंकवाद विरोधी दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, नेशनल मैरिटाइम फाउंडेशन सभी भारतीयों को सलाम करता है और उन वीरों को श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने आतंकवाद से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी; उन निर्दोष पीड़ितों को, जो इस निरर्थक हिंसा के शिकार हुए; और उन अथक जवानों व महिलाओं को, जो दिन-रात हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं, ताकि देशवासी चैन से सो सकें।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की आधिकारिक घोषणा 21 मई 1991 को भारत के सातवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद की गई थी। तमिलनाडु में एक आतंकवादी द्वारा अभियान चलाकर उनकी हत्या कर दी गई थी। उसके बाद वी.पी. सिंह सरकार के तहत केंद्र ने 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों आदि में आतंकवाद विरोधी शपथ ली जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक रैली में भाग लेने गए थे। उनके सामने एक महिला आई जो लिबरेशन ऑफ़ तमिल टाइगर्स ईलम (LTTE) नामक आतंकवादी समूह की सदस्य थी। उसके कपड़ों के नीचे विस्फोटक थे और वह प्रधानमंत्री के पास आकर झुकी जैसे कि वह उनके पैर छूना चाहती हो। अचानक एक बम विस्फोट हुआ जिसमें प्रधानमंत्री और लगभग 25 लोग मारे गए। यह अंतर्देशीय आतंकवाद है जिसने भय पैदा किया और हमारे देश ने प्रधानमंत्री को खो दिया।
आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने के पीछे कई उद्देश्य हैं। इनमें शांति और मानवता का संदेश फैलाना, लोगों में आतंकवादी समूहों तथा उनके आतंकवादी हमले की योजना के बारे में जागरूकता बढ़ाना, लोगों के बीच एकता का बीज बोकर लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देना शामिल है। इसके अलावा, युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने से उन्हें विभिन्न आतंकवादी समूहों में शामिल होने से रोका जा सकेगा। देश में आतंकवाद, हिंसा के खतरे तथा लोगों, समाज और पूरे देश पर इसके खतरनाक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना भी इसका मुख्य उद्देश्य है।
आतंकवाद विरोधी दिवस कैसे मनाया जाता है? आतंकवाद और हिंसा के खतरों पर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बहस या चर्चा आयोजित करके उल्लिखित उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। आतंकवाद और उसके परिणामों के दुष्प्रभावों को उजागर करने के लिए जन शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लोगों को आतंकवाद के प्रभावों से अवगत कराने के लिए रैलियां और परेड आयोजित करती हैं। दिवंगत प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष जुलूस निकाले गए और लोग राजीव गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित हुए। कई स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी और निजी कार्यालयों में लोग सिर झुकाकर दो मिनट का मौन रखते हैं। गृह मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि इस अवसर के महत्व और गंभीरता को देखते हुए, डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से आतंकवाद विरोधी संदेश के प्रचार के अभिनव तरीकों पर विचार किया जा सकता है।
हम प्रसिद्ध वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले को नहीं भूल सकते, जो एक आतंकवादी हमला था। मुंबई पर 26/11 का हमला भी इस संबंध में अपवाद नहीं है। इसलिए आतंकवाद विरोधी दिवस गुस्सा व्यक्त करता है और मानवता के साथ एकजुटता दिखाता है। आतंकवाद एक ऐसा कृत्य है जिसमें आतंकवादियों के भयानक कृत्यों से लोगों में जान का नुकसान और मौत का डर पैदा होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह मानव अधिकारों पर हमला है। इसलिए, हमें एक साथ आना चाहिए और प्यार, देखभाल आदि फैलाकर इसे खत्म करना चाहिए। यह सही कहा गया है कि "आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता। वे केवल विनाश की भाषा समझते हैं"।
Read Also: World Bee Day 2025 | मधुमक्खियों के बिना जीवन अधूरा: विश्व मधुमक्खी दिवस की थीम और महत्व
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस भारत में एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह लोगों से अपने दैनिक जीवन में सतर्क और सावधान रहने का आग्रह करता है। यह लोगों को अपने मतभेदों को भूलकर सौहार्दपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रहने के लिए प्रोत्साहित करके शांति को बढ़ावा देता है। यह हमें एहसास कराता है कि समाज को शांतिपूर्ण बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
जय हिंद।
By स्वीटी कुमारी (स्वतंत्र लेखक)
Watch Also: Corona Update | Coronavirus New Variant In Asia | Covid Lf.7 Variant Symptoms | Covid Variant India